Motivational Stories in Hindi

Read 6 amazing bravery stories of children below.

motivational stories in hindi

Believe it or not, bravery is a quality that can’t be taught, but rather something that comes from within. It is not determined by age. Even children can have just as much courage as grownups do in times of crisis. Any one of us could find ourselves suddenly in the midst of a dangerous situation where we start to wonder whether or not it’s okay to flee or call for help. Many people stay put and deal with such situation out of bravery.

About "Nanhe Bachchon Ke Saahas"

Courage is a quality that cannot be taught in school, it is something that comes from within. It also does not depend on age as even a small child can turn out to be a brave heart in the face of adversity.  

This podcast pays pay tribute to such children who have shown extreme courage when it was needed the most. There are those extraordinary children who act bravely in difficult situations to save the lives of others around them – be it their family members or complete strangers and have been awarded the “Bravery Awards” from the President of India. 

Listen and get inspired by these motivational stories in Hindi which, though fictional, are heavily inspired by true events from real-life incidents of children, who did not let fear stop them from helping those in danger.

About National Bravery Award

The Indian Council for Child Welfare (ICCW) launched the National Bravery Award scheme with the goal of honouring children aged 6 to 18 who demonstrate exceptional bravery and inspire other children through their actions. The Bharat Award, Sanjay Chopra Award, Geeta Chopra Award, Bapu Gaidhani Award, and the General National Bravery Awards are among the five categories.

A medal, a certificate, and a cash prize are given to the winners. The winners of the Bharat Award receive a gold medal, while the others receive silver. Each child receives financial assistance to complete his or her education as part of ICCW’s sponsorship programme under the Indira Gandhi scholarship scheme.

Motivational Stories in Hindi | Bravery Stories

You’ve come to the right place if you’re looking for motivational stories in Hindi. I’m going to share with you the top 6 motivational Hindi stories that are totally incredible. These Hindi motivational stories are true stories about children who showed courage and bravery while responding to a situation where they saw someone(s) being threatened or in trouble. Enjoy listening to such motivational stories below to assist children in their growth in your life and in whatever career path they choose.

Top 6 Hindi Motivational Stories

Bravery Story 1. हैदराबाद की रुचि (Hyderabad Ki Ruchi)

हैदराबाद के पास एक गाँव में रुचि नाम की एक बारह साल की लड़की रहती थी।  रूचि के गाँव ने विकास की दृष्टि से अभी बहुत ज़्यादा तरक्की नहीं करी थी।  वहां साफ़ सुथरी हवा और शुद्ध पानी तो था पर बिजली, पक्की  सड़कें, बड़े अस्पताल और स्कूल कॉलेज नहीं थे।  रुचि मज़बूत इरादे रखने वाली लड़की थी।  वह शिकायतों में नहीं बल्कि समाधान ढूंढने में ज़्यादा भरोसा करती थी। रूचि गाँव से थोड़ा दूर आज़ाद public school की छात्रा थी। अपनी कड़ी मेहनत के दम पर रुचि हमेशा अपनी कक्षा में सर्वोच्च स्थान पर रहती।  पर रुचि में अपनी बुद्धिमानी का ज़रा भी घमंड नहीं था।  वह हमेशा अपनी सखी सहेलियों की मदद करने को तैयार रहती। यही नहीं, समय समय पर रुचि दीन हीन लोगों को भोजन और कपडे दान देने जैसे उदार काम भी करती थी।  रुचि बड़ी हो कर एक वकील बनकर लोगो को न्याय दिलाने में सहायता करना चाहती थी।  

यह सर्दियों की बात है।  बहुत महीनों से रुची माँ के दिए हुए जेबखर्च से बचत कर के कुछ पैसे जमा कर रही थी।  रुचि को आखरी सर्दियों में एक लाल रंग की jacket बहुत पसंद आयी थी।  पर jacket थोड़ी महंगी थी।  हालाँकि रुची के माता पिता उसे उसके एक बार मांगने पर वह jacket उसे दिला सकते थे, पर रुचि को माता पिता से एकदम से इतना खर्चा कराना ठीक ना लगा।  इसलिए पिछली सर्दी से रुचि एक एक पैसा अपनी मन पसंद jacket खरीदने को जोड़ रही थी।  आज वह दिन गया था जब रुचि के पास पर्याप्त पैसे इकठे हो गए थे।  रुचि ख़ुशी ख़ुशी बाजार की तरफ निकल पड़ी।  पर यह क्या।  रूचि रास्ते में देखती है की एक गरीब बुजुर्ग बाबा , पतला सा, कुछ कुछ जगह से फटा हुआ मैला कम्बल लपेट कर सड़क किनारे बैठे ठण्ड से काँप रहे हैं।  

रुचि से यह देख कर रहा ना गया और वह बाजार जा कर jacket खरीदने के लिए जमा किये हुए  पैसों से बुज़ुर्ग के लिए एक कम्बल खरीद लायी। बुजुर्ग कम्बल पा कर रुचि का को धन्यवाद देने लगे।     

 

इस पर  रुचि  शर्माते हुए बोली – “बाबा सही मायने में इंसान वही है जो दूसरे इंसान के मुसीबत के वक़्त में काम आये। ” 

 

और ऐसा कह कर रुचि घर वापस गयी। कुछ दिन बाद रुचि ने अपने मामा जी से बात कर के उन बुजुर्ग को एक वृद्धाश्रम में भिजवा दिया जहा उनके दिन सुकून से कटने लगे।  

कुछ दिन बाद, ठण्ड बीती और मौसम सुहाना हो चला। ऐसे ही एक दिन की बात हैरुचि स्कूल बस का इंतज़ार कर रही थी।  पर आज शायद बस को आने में थोड़ी देर हो गयी थी।  तभी रुचि के पिता जी के पास स्कूल बस के ड्राइवर का फ़ोन आया और पता चला की स्कूल बस खराब होने की वजह से आज उसे खुद ही स्कूल जाना पड़ेगा।  रूचि के पड़ोस में सचिन और रीना नाम के 2 भाई बहन रहते थे जो उसी के स्कूल में पढ़ते थे।  रुचि ने उनके साथ मिल कर एक ऑटो रिक्शा किया और स्कूल की तरफ निकल पड़ी।  

स्कूल के रास्ते में एक मानव रहित railway crossing पड़ती थी। मानव रहित railway crossings ऐसी railway crossings होती  हैं जहाँ से निकलने वाले लोगों को दोनों तरफ से आने जाने वाली trains को ध्यान में रखते हुए railway track पार करनी पड़ती है।  वहां किसी तरह का Gate या फाटक नहीं होता। उस  railway crossing पर जैसे जैसे गाड़ियों का traffic बढ़ रहा था वैसे वैसे एक gate लगाने के लिए दबाव बढ़ रहा था। 

Railway crossing को पार करते में अचानक रुचि का Auto खराब हो गया और अपनी जगह पर रुक गया।  तभी रुचि ने दूसरी तरफ से एक रही एक ट्रेन की आवाज़ सुनी।  Auto चालाक के हाथ पाँव पूल गए।  वह जल्दी जल्दी Auto start करने की कोशिश करने लगा पर auto start ही नहीं हो रहा था।  उधर ट्रेन सीटी देती हुई तेज़ गति से auto की तरफ दौड़ती हुई रही थी।  बच्चे कुछ देर को सहम गए। रुचि के साथ बैठे बच्चे तेज़ आवाज़ में रोने लगे। पर तभी रुचि को महसूस हुआ की हिम्मत हारने से आज तक किसी का भला नहीं हुआ। रुचि ने जल्दी से Auto से नीचे उतर कर रीना को गोद में लिया और रेलवे ट्रैक के साइड में खड़ा किया।  इतनी देर में ट्रैन केवल 50 मीटर दूर रह गयी थी।  सचिन अभी भी Auto में घबराया हुआ बैठा था। रुचि सचिन को Auto से उतारने के लिए फिर से Auto में चढ़ी। पर जब रुचि ने देखा की ट्रैन अब बहुत ज़्यादा नज़दीक गयी है , तो उसने सचिन को तेज़ धक्का दिया और खुद भी उस के साथ Auto के बहार कूद पड़ी। उधर Auto चालक भी अपनी जान बचाने को Auto छोड़ के एक किनारे कूद गया।  सब को मामूली खरोंच आयी।  ट्रैन ऑटो ko takkar maar ke कर तेज़ गति में निकल गयी।  आस पास खड़े लोगो की यह नज़ारा देख कर चीख निकल गयी।  बच्चो को पास के शहर के अस्पताल पहुँचाया गया जहाँ उनकी मरहमपट्टी वगैरह करी गयी।  

शाम को पुलिस इंस्पेक्टर बच्चों से मिलने आये।  उन्होंने बच्चों के माँ बाप को हिम्मत बँधायी और जल्दी रेलवे क्रासिंग पर फाटक निर्माण का भरोसा दिलाया।  

फिर पुलिस इंस्पेक्टर ने रुचि की तरफ देख कर कहा – ” बेटी आज तुम ने अद्भुत साहस दिखाया।  तुम ने ना सिर्फ अपनी बल्कि अपने साथ 2 बच्चों की जान और बचायी है।  मैं सरकार ने इस गणतंत्र दिवस पर तुम्हे बहादुरी पुरस्कार दिलवाने की सिफारिश करूँगा।  ” रुचि के चेहरे पर एक संतोषजनक मुस्कान बिखर गयी। 

Note: These are fictional motivational stories in Hindi but heavily inspired by real-life incidents where these children were awarded a bravery award by Govt. of India.

Bravery Story 2. केरला के फिलिप और जोसेफ (Kerala Ke Phillip Aur Joseph)

केरला, भारत का वह राज्य जिसे इंग्लिश में “God’s own country” भी कहते हैं, यानि भगवान का घर । भारत के सबसे दक्षिण में बसे इस राज्य में कई चीज़ें मशहूर हैं, kathakali, mohiniattam, kallirpattu,  यहाँ की बारिश, कॉफी गार्डेन्स,  Back Waters, और उस पर चलती हाउस बोट्स। ये बॅक वाटेर्स दरअसल केरेल के शहर अललेप्पी में हैं, जिनमे सैर करने दुनिया भर से लोग आते हैं। ये हाउस बोट्स कई लोगों के लिए मनोरंजन और आराम का नाम हैं, तो कई लोगों के लिए जीवन यापन का साधन। 

और इनमें से एक खूबसूरत हाउस बोट के मालिक हैं पॉल जॉनसन। पॉल का घर अलेप्पी में लककदिव सी के किनारे हैं, ये एक बस्ती है जिसमे ज़्यादातर ऐसे लोगो का घर है जिनकी रोज़ी रोटी समुद्र से चलती है, जैसे मछुआरे, नाविक और हाउस बोट्स के मालिक। पॉल का भरा पूरा परिवार है, उनके बुज़ुर्ड मटा पिता, पत्नी और दो बेटे 14 साल का फिलिप और 12 साल का जोसफ। 

फिलिप और जोसफ दोनों बहुत ही होनहार हैं। वह खुद तो खेल कूद में माहिर हैं ही, साथ ही अपनी बस्ती में रहने वाले और बच्चों को भी कई तरह के खेल सिखाते हैं। रोज़ शाम को स्कूल से आने के बाद, दोनों भाई साइकल ले के निकाल जाते और सभी बच्चों को इकट्ठा कर के खूब दौड़ भाग और कसरत करते। शायद इसी वजह से वो अपने पड़ोसियों को एक बहुत बड़ी अनहोनी से बचा पाये। 

बात कुछ महीने पहले की है, फिलिप और जोसफ रोज़ की ही तरह अपने दोस्तों के साथ साइकल चला रहे थे, यह उनका रूटीन था की वह पार्क के चारों ओर चक्कर लगते और रेसिंग भी करते। उस दिन साइकल चलाते चलते वह सब थक गए तो विश्राम करनेके लिए वो राजन के घर के बाहर खड़े हो गए। राजन 10 साल का था और अपने माता और पिता और 2 साल के भाई के साथ रेहता था, उसके पिता नाविक थे, इसलिए वह सारा दिन बाहर ही रहते। उस समय घर में केवल राजन की माँ थीं, जो कुछ दिन पहले बाथरूम में फिसा गईं थी और उनके पैर में प्लास्टर चढ़ा था। 

उन सबको प्यास लगी थी, तो जोसफ ने राजन से कहा “राजन ज़रा अपने फ्रीड्ज से एक बोतल ठंडा पानी ले आओ, बहुत प्यास लग रही है” 

“अरे ठंडा पानी नहीं राजन, तुम रूम टेमपेरचर का ही पानी लाना, जब पसीना आए तो ठंडा पानी नहीं पीना चाहिए  नहीं तो तबीयत खराब ही जाती है”

“हाँ हाँ रुको, मैं अभी लेके आया” इतना कह कर राजन अंदर चला गया। फिलिप, जोसफ और बाकी दोस्त उनका इंतज़ार करने लगे। 

बस दो मिनट ही हुए थे की अचानक राजन की और उसकी माँ की ज़ोर ज़ोर से छिलाने के आवाज़ आई 

“राजन तुम बाहर भागो यहाँ से, जल्दी…. जाओ राजन” उसकी माँ ने कहा 

“नहीं माँ में आपको छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगा” राजन भी चिल्लाते हुए बोला 

यह सुन कर फिलिप और जोसफ साइकल बाहर छोड़ कर घर के अंदर भागे, और किच्चन में पहुंचे 

वहाँ का नज़ारा देख कर उनके होश उड़ गए… उन्होने देखा की बहुत तेज़ गॅस की बदबू के आ रही थी, साथ ही सिलिंडर ने आग पकड़ ली थी। राजन अपने भाई को पकड़ के खड़ा था और हड़बड़ी में उनकी माँ वहीं फिसल गईं थी॰

फिलिप समझ गया था की सिलिंडर में आग लगने का मतलब है की यह सिलिंडर किसी भी समय ब्लास्ट कर सकता था। उसे पता था सब लोग तो भाग कर बाहर चले जाएँगे लेकिन राजन की माँ को उठा केआर सहारा दे कर बाहर लाना होगा। 

उसने जोसफ से कहा “जोसफ तुम राजन और कृशन को ले कर दूर चले जाओ, आस पास के लोगों को चिल्ला कर घर से बाहर निकालने को कहो… जल्दी” 

“लेकिन फिलिप तुम्हें छोड़ के मैं कैसे जा सकता हूँ” जोसफ ने कहा 

“जाओ जल्दी जोसफ, मुझे कुछ नहीं होगा, मैं आंटी को सहारा देकर बाहर लाता हूँ” 

जोसफ ने ऐसा ही किया, दोनों बछों का हाथ पकड़ कर वो बाहर चिल्लाता हुआ भाग रहा था “सब लोग घर से बाहर निकलो, सिलिंडर ने आग पकड़ ली है, जल्दी बाहर निकलो”

उसकी आवाज़ सुन कर लोग घरों से बाहर निकाल आए

इधर फिलिप राजन की मा को सहर दे कर उठाने की कोशिश कर रहा था, वो जैसे ही थोड़ा उठी, फिर से गिर जातीं, फिलिप को पता था की उन के पास ज़्यादा समय नहीं था, किसी तरह उसने राजन की माँ को उठाया और सहारा दे कर जल्दी जल्दी बाहर की और ले कर जाने लगा 

जैसे ही वह दोनों घर के गेट  पे पहुंचे, zooooooooooooooooooooooooooooor से धमाके की आवाज़ आई… सिलिंडर ब्लास्ट हो चुका था… किच्चन की हालत खराब ही चुकी थी, लेकिन फिलिप और राजन की माँ सही सलामत घर से बाहर पहुँच चुके थे। फिलिप और जोसफ की बहादुरी और फुर्ती की वजह से सबकी जान बच गयी थी। 

अब तक पूरी बस्ती की लोगों के साथ साथ फिलिपौर जोसफ के माता पिता भी वहाँ आ गए थे॥ अपने बेटों की बहादुरी की बात सुन के दोनों गर्व से फूले नहीं समा रहे थे। 

सब पड़ोसी दोनों भाइयों की वाहवाहिकर रहे थे और राजन की माँ रो रो कर राजन की माँ को धन्यवाद कर रही थी। 

ये बात इतनी मशहूर हो गयी थी की अगले दिन फिलिप और जोसफ का नाम अखबार में आया, जिसमे उनकी बहुत तारीफ लिखी थी। साथ ही वहाँ के नेता ने भी उनकी बहुत सराहना की और कहा की वह 26 जनवरी को दिये जाने वाले वीरता पुरस्कार के लिए उन दोनों के नाम का सुझाव देंगे।

Note: These are fictional motivational stories in Hindi but heavily inspired by real-life incidents where these children were awarded a bravery award by Govt. of India.

Bravery Story 3. अरुणाचल की तारा (Arunachal Ki Tara)

अरुणाचल प्रदेश में लोहित नदी के किनारे काहो नाम का एक खूबसूरत गाँव है।  यह गाँव India – China border के काफी करीब है। गाँव ने अभी बहुत ज़्यादा तरक्की नहीं की थी और इसलिए वहां अच्छे स्कूल, बड़े अस्पताल, पक्की चौड़ी सड़कें और उद्योग नहीं थे।  India – China border के काफी नज़दीक होने की वजह से Indian Army ने काहो गाँव में काफी सारे posts बनाये हुए थे।  अक्सर गाओंवाले, अपने नाते रिश्तेदारों से बात करने के लिए Army के phones ही इस्तेमाल करते थे।  

इसी गाँव में एक 11 साल कीतारा नाम की एक बच्ची रहती थी।  तारा बचपन से बहुत बहादुर बच्ची थी।  या ऐसा कह लीजिये की अविकसित जगह में कठिनाइयों का सामना करते करते करते वह बचपन से बहादुर और मजबूत बन गयी थी। तारा बचपन से पिताजी का खेती में हाथ बांटती रही थी। जितना समय बचता उसमे वह घर में माँ की रसोई में मदद करती।  गाँव में अक्सर तेज़ बारिश के बाद बाढ़ का खतरा बना रहता था इसलिए तारा ने इतनी छोटी उम्र में अच्छी तैराकी सीख ली थी।  

एक सुबह तारा के लिए खुशियों का पैगाम ले कर आयी।  काहो के पास सरकार ने एक प्राथमिक विद्यालय शुरू करवा दिया।  कहो गाँव के बच्चे अब उस विद्यालय में पढ़ने जा सकते थे। बच्चे इस खबर से काफी खुश थे। तारा के पिताजी ने तारा और उसकी छोटी बहन का दाखिला स्कूल में करा दिया। देखा देखि  तारा के पड़ोस में रहने वाली उसकी सहेली नैना के पिताजी ने भी अपनी बेटी का दाखिला स्कूल में करा दिया।  अब तीनो लोग सुबह सुबह कंधे पर बस्ता टांग कर, हाथ में पुंगी रोटी खाते खाते स्कूल जाते थे।  स्कूल पहुँचने के लिए तारा और उसकी साथियों को लोहित नदी पार करनी पड़ती थी।  

सावन का महीना आया। लोहित नदी का जल स्तर थोड़ा बढ़ गया था और बहाव भी तेज़ हो गया था। हर रोज़ की तरह  तारा, उसकी छोटी बहन और नैना, तीनो स्च्होल जाने के लिए नदी के किनारे पहुंचे।  नदी का बहाव देख कर तीनो आज थोड़ा हिचकिचाए।  पर स्कूल में पढ़ाई ज़ोरों पर थी इसलिए  छुट्टी लेने की किसी की इच्छा नहीं हुई।  आखिरी में हिम्मत कर के तीनो एक दूसरे का हाथ पकड़ कर नदी में उतरे और धीरे धीरे आगे कदम बढ़ाने लगे। तभी अचानक से तेज़ पानी की एक लहार आयी और तीनो बच्चों के पैर उखड गए।  तारा उसकी बहन और नैना तीनो लहार के साथ बह गए।  तारा को इतनी घबराहट ज़िन्दगी में कभी नहीं हुई थी।  वह अपनी धड़कन आज पहली बार महसूस कर पा रही थी।  पर तारा बचपन ने बचपन से एक ही बात सीखी थीइश्वर हमेशा साहसी मनुष्य की सहायता करते हैं।  यह सोच कर तारा ने अपनी पूरी ताकत लगा कर किनारे की तरफ तैरना शुरू किया।  कुछ देर में तारा किनारे तक पहुँचाने में सफल हो गयी।  किनारे पर पहुंच कर तारा ने लम्बी नज़र दौड़ाई और पाया की उसकी छोटी बहन एक चट्टान पकड़ कर और नैना एक पेड़ की डाली पकड़ कर मदद का इंतज़ार कर रही हैं।  

अब तारा फिर से नदी में उतरी और तैरते हुए अपनी छोटी बहन के पास तक पहुँच गयी।  तारा ने अपनी बहन को कस कर अपनी बांह पकड़ने को कहा और बहाव से लड़ कर किनारे की तरफ तैरने लगी।  छोटी बहन को किनारे पर उतार कर तार एक बार फिर नदी में उतरी और नैना के करीब आयी।  तारा ने नैना को भी अपनी बांह पकड़ने को कहा और पूरी ताकत से किनारे की तरफ तैरने लगी।  तार की शक्ति ख़त्म होने लगी थी।  उसने पूरी ताकत लगा कर किसी तरह नैना को किनारे तो पहुंचा दिया लेकिन इस से पहले वह पानी से बहार आती , पानी का तेज़ बहाव तारा को अपने साथ बहा ले गया।  तारा की छोटी बहन और नैना में चीख पुकार मच गयी।  इतनी देर में गाँव वाले और सेना के जवान भी वहां पहुँच गए थे।  भारत की सेना के वीर जवानों ने तुरंत एक रस्सी निकाली और तारा की तरफ फेंकी।  तारा ने अपनी बची खुची ताकत से उस रस्सी को कस कर पकड़ लिया और जवानों ने उसे किनारे की तरफ खींच लिया।  तारा बेसुध हो चुकी थी, उसे जल्दी से पास के शहर के अस्पताल ले जाय गया।  

कुछ घंटों बाद तारा ने आंखें खोली और खुद को अस्पताल के एक कमरे में पाया। पास में अपने माता पिता को देख कर उसकी आँखें भर आयीं।  तारा के माता पिता ने उसे गले लगा कर ढेरों शाबशियाँ दी।  पिताजी बोले – “आज तुम ने कमाल कर दिया बेटी।  कर्नल साहब ने वादा किया है की वह इस सरकार से तुम्हे वीरता पुरस्कार दिलाने की सिफारिश करेंगे। ” 

छुटकी और नैना ठीक हैं , यही मेरा पुरस्कार है पिताजी।तारा ने कहा।

Note: These are fictional motivational stories in Hindi but heavily inspired by real-life incidents where these children were awarded a bravery award by Govt. of India.

Bravery Story 4. तेलंगाना का कार्तिक (Telangana Ka Kartik)

नासपुर, तेलंगाना के शहर आदिलाबाद में एक छोटा सा कस्बा है, जो गोदावरि नदी के किनारे बसा हुआ है। यह एक ऐसी जगह है जहां की सुबह बहुत खूबसूरत होती है, खास कर कोयले की खान में काम करने वाले लोगों और उनके परिवारों के लिए, जो अपने दिन की शुरुवात गोदावरि के किनारे बसी कोल कॉलोनी में चाय की चुसियों के साथ करते हैं। कोल कॉलोनी एक ऐसी जगह है जहां कोयले की खान में काम करने वाले लोगों के परिवार रहते हैं। एक ऐसी कॉलोनी जहां हर कोई एक दूसरे को जानता है और अच्छे-बुरे वक़्त में एक दूसरे के साथ देना वे अपना धर्म समझते हैं। पास ही है St Francis, शहर का एक बेहतरीन स्कूल और कोल कॉलोनी के ज़्यादातर बच्चे इसी स्कूल में पढ़ते हैं 

माइनिंग सूपर्वाइज़र कृष्णा रेड्डी भी अपने परिवार के साथ उसी कॉलोनी में रहते थे। परिवार में उनकी पत्नी रंजना, बेटा कार्तिक और बेटी कृति थे। कार्तिक 8th में पढ़ता था और कृति 4th में। दोनों बच्चे पढ़ाई में काफी होशियार और तेज़ थे। 

रेड्डीज़ के घर में अगस्त के इस दिन की शुरुआत भी बाकी सब डीनो के लिए हुई थी, कृष्णा रेड्डी नाश्ता कर के अपने दफ्तर जा चुके थे, कृति भी exam देने स्कूल गयी थी, घर पर केवल कार्तिक और उसकी माँ रंजना थे। उस दिन कार्तिक की prep-leave थी, इसलिए वह घर पे ही था। उसका इरादा था की नाश्ता कर के, माँ की थोड़ी मदद करने के बाद वो पढ़ने बैठ जाएगा। 

माँ, जल्दी से नाश्ता दे दो कार्तिक बोला, “तू dining table पर बैठ मैं अभी ले के आती हूँ”, रंजना ने बहुत ही स्वादिष्ट मेडु वड़ा बनाए थे, नारियल की चटनी के साथ ये कार्तिक का फवौरिते नाश्ता था। 

“तू नाश्ता कर, मैं वॉशिंग मशीन से कपड़े निकाल के लाती हूँ, बस उन्हे सूखा केतू पढ्नेबैठ जाना, मैं जल्दी से बाल्कनी की ढुलाई कर दूँगी” यह कह कर, कार्तिक को नाश्ता करते छोड़ कर, वह वॉशिंग मशीन से धुले हुये कपड़े निकालने गईं और उन्हे ला कर कार्तिक को दे दिये। 

कार्तिक एक बहुत ही खुशमिजाज लड़का था, कपड़े सुखाते सुखाते वो ज़ोर ज़ोर से गाना भी गा रहा था, इधर बाल्कनी में बाल्टी भरते ही उसमे से आधा पानी ले कर रंजना ने बाल्कनी के एक कोने में डाला और झाड़ू से उसे साफ़ करने लगीं… तभी अचानक पानी का बहाव बाल्कनी के दूसरे कोने में गया जहां गलती से बिजली का एक नंगा तार लटका हुआ था और उसका कोना ज़मीन पर पड़े पानी को छूने ही वाला था। दरअसल अगस्त  में नसपुर में काफी बारिश और तूफान आता है, इसीलिए छत से आ रहा बिजली का वह तार टूट कर अलग हो गया था। रंजना इस बात से अंजान थीं, जैसे ही उन्होने उस कोने में झआड़ू से पानी को धकेला, उसी समय उन्हे भयंकर करेंट लगा और उनका शरीर ज़मीन पर गिर गया और तार से चिपक गया.

कार्तिक को जइसे ही माँ की चीख सुनाई दी वह तुरंत वहाँ दौड़ा दौड़ा आया, और रंजना को तार से चिपके हुए पाया॥ “माँ, क्या हुआ आपको???” कार्तिक घबरा गया, एक पल को तो उसे कुछ समझ नहीं आया, थोड़ा गौर से देखने के बाद उसे पता चल की माँ बिजली के नंगे तार की चपेट में हैं… लेकिन वह डरा नहीं तभी उसे अपनी साइन्स का लेसेन याद आया, जिसमे यह बताया गया था की ऐसी अवस्था में सबसे पहले मैं स्विच बंद करना चाहिए॥  लेकिन मेन स्विच तो नीचे था, और उसके पास ज़्यादा वक़्त भी नहीं था, तभी उसे दूसरी तरकीब सूझी, उसने ये भी पढ़ा था की अगर कोई बिजली के तार से चिपक जाये तो उसे तार से छुड़ाने के लिए लकड़ी की किसी चीज़ का उपयोग कर के तार से अलग करो॥ कार्तिक ने आव देखा न तान जल्दी से डैनिंग तबलेकी कुर्सी ला के, उसके पाये की मदद से माँ को तार से दूर करने लगा॥देखते ही देखते उसकी कोशिश काम याद हुई और रंजना का शरीर तार से अलग हो गया, और कुर्सी की मदद से ही उसने तार को ज़मीन से दूर कर दिया। इतने में शोर सुन कर पड़ोस में रहने वाले लोग भी वहाँ पहुँच गए। रंजना को उनके भरोसे छोड़ कर कार्तिक भाग के मेन स्विच बंद करने गया और उसके बाद एक पड़ोसी की कार में माँ को लेके अस्पताल के लिए निकाल…  रंजना काफी shock में थीं, लेकिन वो खतरे से बाहर थीं। जब तक कृष्ण रेड्डी हस्पताल पहुंचे तब तक रंजना होश में आ चुकी थीं। 

“आज कार्तिक की सूझ बूझ ने ही मुझे बचाया है, नहीं तो न जाने क्या हो जाता।“ रंजना ने कहा 

“मुझे तुम परगर्व है कार्तिक, आज तुमने न सिर्फ अपनी माँ को बचाया है बल्कि सबके सामने एक एक्जाम्पल भी सेट कर दिया है” 

कार्तिक बहदुरी की मिसाल बन गया था, उसने अपनी जान की परवाह न कर के, अपनी सूझ बूझ, बहदुरी और फुर्ती अपनी माँ की जान बचा ली thi। सभी लोगों से उसे बहुत सराहा और उसकी दाद दी।  भारत सरकार भी 26 जनवरी की कार्तिक जैसे ही बहादुर बच्चों को वीरता पुरस्कार प्रदान करती है|

Note: These are fictional motivational stories in Hindi but heavily inspired by real-life incidents where these children were awarded a bravery award by Govt. of India.

Bravery Story 5. आगरा का रोहित (Agra Ka Rohit)

यह कहानी रोहित की है।  रोहित एक 9 साल का लड़का था जो अपने परिवार के साथ आगरा के करीब गाँव में रहता था।  रोहित अपने गाँव के  पढ़ने जाता था।  वह एक अच्छे स्वभाव वाला था जो सबकी बात मानता था। रोहित कभी स्कूल miss करता था और हमेशा अपने टीचर्स का सम्मान करता था।  इसके अलावा रोहित मौका मिलने पर लोगों की मदद भी करता था। 

रोहित स्कूल और खेल के अलावा अपने पिताजी का खेती बाड़ी में हाथ भी बनता ता था।  उसके पिताजी के खेत Expressway के नज़दीक थे, जहाँ से अक्सर तेज़ रफ़्तार गाड़ियां गुज़रती रहती थीं।  अक्सर Buses को देख कर रोहित उत्सुक हो उठता और अपने पिताजी से कहता – ” बाबा देखो कितनी तेज़ गाडी।  देखना में भी एक दिन कार खरीदूंगा और उसमे बैठ कर तेज़ी से सेर किया करूँगा।  फिर हमरे सारे काम जल्दी जल्दी हो जायेंगे।

रोहित की बात सुन कर उसके बाबा समझातेहाँ बेटा क्यों नहीं।  पर गाडी तेज़ नहीं पूरी ज़िम्मेदारी से चलाना और हमेशा ध्यान रखें दुर्घटना से देर भली। ऐसा कोई भी काम मत करना जिस से तुम्हारी वजह से किसी को नुक्सान हो।  “

रोहित समझदार था तो उसने अपने पिता की बात पर मुस्कुराकर हाँ में सर हिलाया और कहाजी बाबा।  आप जैसा कहेंगे में वैसा ही करूँगा। ” 

ऐसे ही एक दिन रोहित अपने पिताजी के साथ खेत पर काम कर रहा था और उसकी नज़र Expressway पर आने जाने वाली गाड़ियों पर ही टिकी हुई थी।  

तभी उसने देखा के दूर से एक पीली रंग की school bus रही है जिसमे कुछ बच्चे बैठे थे।  बच्चे हंस गा रहे थे।   

ड्राइवर भी बच्चों के साथ मस्ती में झूम रहा था।  बस को देखने से पता चलता था की बच्चे पिकनिक से वापस लौट रहे थे।  

रोहित उन्हें देख कर खुश ही हो रहा था के अचानक से ज़ोर के धमाके की आवाज़ आयी।   

यह आवाज़ bus का tyre फटने की आवाज़ थी।  Tyre फटने से bus बेकाबू हो गयी और सड़क के किनारे बने footpath पर रगड़ने लगी।  

और रगड़ने की वजह से bus में आग लगनी शुरू हो गयी।  देखते ही देखते bus से आग की लपटें और धुआँ नज़र आने लगा।  Driver आग को देख कर घबरा गया और bus छोड़ कर बहार कूद गया।  

Bus से धुआं निकल रहा था और आग से घबराये बच्चों की चीख पुकार की आवाज़ें रहीं थीं।  रोहित ने जब देखा की bus से धुआं निकल रहा है और आग से घबराये बच्चों की चीख पुकार की आवाज़ें रहीं हैं तो उस से रुका नहीं गया।  

वह तुरंत बस की तरफ दौड़ा।  रोहित ने देखा की bus के अंदर मौजूद बच्चे चिल्ला रहे थे और धुंए में उनका सांस लेना मुश्किल हो रहा था।  

रोहित ने हालत को झट से भांप लिया और वक़्त ना गंवाते हुए हाथ में मौजूद डंडे से bus के शीशे तोड़ने लगा।  उसे ऐसा करते देख driver भी शीशे तोड़ने लगा।  Driver को शीशे तोड़ते छोड़ रोहित खेत में राखी चारपाई उठा लाया और bus की खिड़की के नीचे रख कर ज़ोर से बोला – ” जल्दी करो इस चारपाई पर कूद कर सब बहार जाओ। ” 

रोहित की बात सुन कर सब बच्चे एक एक कर के उस चारपाई पर bus की टूटी खिड़की से बहार कूदने लगे।  थोड़ी देर में सारे बच्चे बहार चुके थे।  

इतने में आस पास के खेत से और किसान भी गए और बच्चों के लिए पीने का पानी ले आये। बच्चों की मरहमपट्टी करी गयी और bus में लगी आग बुझा दी गयी।  

रोहित की वजह से एक बड़ा हादसा होने से टल गया।  सब लोग रोहित की बहादुरी की प्रशंशा करने लगे।  बच्चों ने भी रोहित को शुक्रिया कहा।  

धीरे धीरे यह बात पूरे गाँव में फ़ैल गयी।  जिस school के बच्चों की जान रोहित ने बचायी थी, उस school ने रोहित को अपने यहाँ आमंत्रित किया और ढेर सारे इनाम दिए।  

शहर के DM ने भी रोहित और उस के पिताजी से मिल कर उसे शाबाशी दी और यह वादा किया की 26 जनवरी को उसे वीरता पुरस्कार दिलाने के लिए सरकार से सिफारिश करेंगे।  

रोहित को भी बहुत ख़ुशी हुई।  उसके पिताजी का सीना गर्व से फूल गया और साथ ही उसे ढेर सारे नए दोस्त मिल गए।

Note: These are fictional motivational stories in Hindi but heavily inspired by real-life incidents where these children were awarded a bravery award by Govt. of India.

Bravery Story 6. दिल्ली का शाहरुख(Delhi ka Shahrukh)

अक्सर हमारे माँ बाप हमें अजनबियों से सावधान रहने को कहते हैं।  और सही भी है, सच में कौन कैसा है यह हम नहीं जानते। लेकिन तब क्या करें जब अचानक किसी दोपहर, एक अजनबी आकर आपके दरवाज़े की घंटी बजा दे।  ऐसा ही एक वाकया हुआ है दिल्ली में जो एक बड़ा हादसा बन सकता था अगर 14 साल के लड़के शाहरुख़ ने सूझबूझ और बहादुरी नहीं दिखायी होती।  

शाहरुख़ अपने माता पिता के साथ मालवीय नगर इलाके में रहता था।  उसके पिता बैंक में काम करते थे और माँ homemaker थीं।  मंगलवार का वह  दिन हर रोज़ की तरह normal ही था।  अखबार वाला आज भी दैनिक अखबार डाल गया था।  अम्मा दूध वाले की मिलावट को ले कर शिकायत कर रहीं थीं और पिताजी सुबह सुबह तैयार हो कर अपने scooter पर बैठ office के लिए निकलने ही वाले थे की पीछे से शाहरुख़ ने आवाज़ लगायी – ” पापा रुकिए, आप lunchbox भूल गए … “

पिताजी : भूला नहीं बेटा छोड़ा था।  रोज़ आलू नहीं खा सकता ना।  चलो लाओ दो।  अम्मा को मत बताइयो यह सब।  

शाहरुख़ : नहीं पापा।अच्छा वह कुछ पैसे चाहिए थे , दोस्तों के साथ बहार जाना है।  

पिताजी : वाह बीटा honesty, कभी तो बोल पापा school project के लिए चाहिए।  सुन कर अच्छा लगा।  पढ़ाई के लिए मांग रहा है।  हाहा लो ज़िम्मेदारी से खर्च करना।  

यह कह कर पिताजी अपने काम को निकल गए और शाहरुख़ का परिवार अपने रोज़ मर्रा के काम में लग गया।  

दोपहर के तक़रीबन 3 बज रहे थे।  सूरज सर पर था और गर्मी अपने चरम पर।  शाहरुख़ की माँ खाना खाने के बाद अपने कमरे में लेटने चली गयीं और शाहरुख़ TV खोल के match लगा के बैठ गया।  

तभी शारुख के घर की bell बजी।  माँ ने रूम से ही शाहरुख़ को आवाज़ दीशाहरुख़ बेटा देखना दरवाज़े पर कौन है?” 

अपनी माँ की आवाज़ सुन शाहरुख़ दरवाज़े पर गया और देखना की एक पतला सा शक्श उनके दरवाज़े पर खड़ा है जिसके कंधे पर leather का office bag लटका है और उसने Blue color की formal shirt और black pant पहनी है।  शाहरुख़ ने उससे पूछाजी  बताइये किस से मिलना है? ” 

Stranger:- बेटा सलीम जी घर पर हैं क्या ?

शाहरुख़ को अपने पिता का नाम सुन कर लगा की दरवाज़े पर खड़ा शख्स पिताजी के जान पहचान का है।  इसलिए उसने थोड़ा सहज हो कर कहानहीं अंकल वह तो घर पर नहीं हैं, office गए हैं, शाम तक आएंगे। ” 

शाहरुख़ उस अजनबी से बात कर ही रहा था की पीछे से अम्मा ने दरवाज़े पर कर पूछाकौन है ?” 

Shahrukh: माँ यह पापा के लिए पूछ रहे थे। 

Maa: अच्छा।जी वह तो घर पर नहीं हैं, कुछ काम था आप को

Stranger: जी मेरा नाम John है में काफी दूर से आया हूँ उनसे बहुत ज़रूरी काम था।  कुछ ज़रूरी दस्तावेज़ों को लेकर बात करनी थी।  

यह सुन कर शाहरुख़ की माँ ने उस अनजान शख्स को घर में आने के लिए कहा और अपने husband को phone मिला कर उस अजनबी के बारे में पूछा।  सलीम ने John नाम के किसी भी शख्स को पहचान ने से इंकार कर दिया और कहा की वह शाम को कर उनसे मिले।  शाहरुख़ की माँ ने John से कहा 

Maa: जी उन्होंने कहा है की वो कही काम में busy है।  आप शाम को कर उनसे मिल लें।  

शाहरुख़ की माँ की बात सुन कर वह अजनबी आदमी सोफे से उठ कर बोलाक्या में आप का toilet use कर सकता हूँ ?”

शाहरुख़ की माँ ने हाँ में सर हिलाया और toilet की तरफ इशारा करते हुए पीछे मुड़ी के अचानक से उस आदमी ने शाहरुख़ की माँ को पीछे से पकड़ लिया और उनकी गर्दन पर चाकू रख कर धमकाते हुए बोला – ” खबरदार ज़्यादा शोर मचाया या होशियारी करी तो अच्छा नहीं होगा। ” 

शाहरुख़ की माँ की डर के मारे आवाज़ तक नहीं निकल रही थी।  अचानक से यह सब होता देख शाहरुख़ भी दो पल को सुन्न हो गया।  उसे कुछ समझ नहीं रहा था और परिवार का normal दिन अचानक से उनकी ज़िन्दगी का सब से खौफनाक दिन में बदल गया था।  

शाहरुख़ अभी कुछ समझ पाटा की वो आदमी दोबारा बोला।  

Stranger :आए सयाने ? सुना नहीं तूने ? पैसा कहाँ है जल्दी बता

Shahrukh: अंकल please माँ को छोड़ दो उहे कुछ नहीं करो। …. 

इस पर आदमी बोलाहाँ तो मुझे पैसे दे और जाने दे, जितना time ख़राब करेगा तेरी माँ के लिए उतनी मुसीबत बढ़ती जाएगी। चल जल्दी कर। 

यह सुन कर शाहरुख़ घबरा गया और उस आदमी के पैर पकड़ कर गिगिडाने लगा और बोलाअंकल पैसे तो पापा के पास रहते हैं उनके account में मेरे पास तो बस 500 Rs है यह ले लीजिये।  please आप माँ को छोड़ दीजिये।

आदमी शाहरुख़ से अपने पैर छुड़ाने की कोशिश करने लगा।  इस बीच उसका हाथ शाहरुख़ की माँ की गर्दन से दूर हो गया।  शाहरुख़ ने यह देखते ही आव देखा ना ताव मज़बूती से उसके पैर पकड़े और ज़ोर से खींच दिए।  वह आदमी धड़ाम से ज़मीन पर गिर गया और चाकू उसके हाथ से छूट कर दूर चला गया।  माँ ने भी मौका देखते ही दरवाज़ा खोला और ज़ोर ज़ोर से शोर मचा कर पड़ोसियों को इकठा कर लिया।  सब ने मिल कर उस शख्स को पकड़ लिया और police के हवाले कर दिया।  

मुसीबत ताल चुकी थी, शाहरुख़ के हौसले ने उसकी माँ और उसे एक बड़ी मुश्किल से बचा लिया था।  सब लोगों ने शाहरुख़ की बहादुरी की जैम कर तारीफ़ करी।  पिता जी भी यह सुनते ही झट से घर गए और शाहरुख़ के सर पर हाथ फेरते हुए बोलेमुझे तुम पे गर्व है बेटा।  आज तुम्हारी आज में समझ गया की मेरा बेटा बहुत बहादुर है। ” 

वह दस minute शाहरुख़ के परिवार के लिए ऐसा समय था की उसने उसके परिवार सभी लोगों को जीवन भर का सबक सीखा दिया था।  

यही की बिना जान पहचान के किसी को घर में आमंत्रण नहीं देना चाइये और मुश्किल वक़्त में हमेशा हौसले और समझदारी से काम लेना चाहिए।  

शाहरुख़ की बहादुरी की खबर दूर तक फ़ैल गयी।  John एक wanted मुजरिम था, उसका पकड़ा जाना बहुत अहम् बात थी इसलिए उसके इलाके के senior police officer ने शाहरुख़ के घर कर उसे धन्यवाद दिया और साथ ही 26 जनवरी के वीरता पुरस्कार के लिए उसका नाम देने की घोषणा भी कर दी। 

Note: These are fictional motivational stories in Hindi but heavily inspired by real-life incidents where these children were awarded a bravery award by Govt. of India.

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FAQ'S on Brave Children Stories

 the Indian Council for Child Welfare (ICCW), was started with the aim of awarding children in the age group of 6-18 years, who display outstanding bravery and inspire other children with their actions.

Bharat Award, Sanjay Chopra Award, Geeta Chopra Award, Bapu Gaidhani Award and the General National Bravery Awards

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